Haryana:सोशल मीडिया छोड़ कार्यकर्ताओं का मन टटोलने गांव-गांव घूम रहे नेता, बिछने लगी चुनावी बिसात – Haryana: Leaders Communicating With People From Village To Village, Leaving Social Media
जिस दौर में सोशल मीडिया के जरिए चुनाव प्रक्रिया को नियंत्रित करने के आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं, उसी समय में हरियाणा की सियासती शख्सियतें गांव-गांव और घर-घर में दस्तक दे रही हैं। लगभग एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस रहे सियासी दलों के बड़े नेता एफबी, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को त्यागकर अभी से जमीन पर उतर चुके हैं। भाजपा के मजबूत कार्यकर्ता नेटवर्क से मुकाबले के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश में कांग्रेस के चेहरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जजपा प्रमुख अजय चौटाला और इनेलो के विधायक अभय चौटाला अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ सीधा संवाद गांवों और कस्बों में जाकर कर रहे हैं।
कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद में भाजपा भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहती। व्यक्तिगत संवाद की यह जिम्मेदारी खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने संभाली है। चाहे पन्ना प्रभारी हों, शक्ति केंद्र प्रमुख हों अथवा आम कार्यकर्ता, धनखड़ उनसे सीधे संपर्क कर रहे हैं। संवाद कार्यक्रम के जरिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने बीते एक महीने के अंदर ही 4500 से अधिक शक्ति केंद्र प्रमुखों, 310 मंडल अध्यक्षों और लगभग इतने ही मंडल प्रभारियों, 19 हजार से अधिक बूथ अध्यक्षों और 19 हजार के करीब बूथ पालकों से सीधा संवाद स्थापित कर लिया है।
प्रदेश में कांग्रेस के बड़े चेहरे और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ‘हाथ से हाथ जोड़ो’ अभियान की शुरुआत अपने ‘घर’ यानी रोहतक से की है। वह एक दिन में दो-चार गांव के लोगों से वहीं जाकर मिल रहे हैं और कार्यकर्ताओं की बात सुन रहे हैं। इस दौरान वह आम लोगों को 6000 रुपये बुढ़ापा पेंशन और 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली जैसे बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं।
इनेलो के विधायक अभय चौटाला जहां राज्य के हर जिले में यात्रा निकाल रहे हैं, वहीं जजपा के अभियान की कमान डिप्टी सीएम के पिता अजय चौटाला ने संभाल ली है। अजय हर जिले और बड़े कस्बों में कार्यकर्ता सम्मेलन कर उनमें जोश भर रहे हैं। वह हर जगह अपने बेटे को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाने का आशीर्वाद मांग रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि हरियाणा की सियासत के चमकते चेहरों की सोशल मीडिया टोलियां चुनावी बिसात में कहां फिट बैठती हैं? इसका जवाब एक नेता के सोशल मीडिया सहायक खुद देते हैं। उनका कहना है कि सोशल मीडिया नेताजी की सभाओं में भीड़ जुटाने के काम आती है। मीडिया को प्रेस कांफ्रेंस के लिए बुलाने और कार्यकर्ता सम्मेलन को कवर करने के लिए आमंत्रण भेजने में सोशल मीडिया बहुत सहायक है। लेकिन, अब पार्टी के कार्यकर्ता और मतदाता नेताओं का व्यक्तिगत ध्यान अपनी ओर देखना चाहते हैं। यह बात सभी बड़े नेताओं को समझ में आ गई है। इसलिए बड़ी रैली के जरिए शक्ति प्रदर्शन करने की जगह नेता गांव-गांव दौरा कर रहे हैं। मेले, उत्सव, समारोह और आयोजनों में उनकी भागीदारी बढ़ रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह सुखद भी माना जा रहा है।
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